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मेरी बीवी कोमल उसकी बॉय फ्रेंड से चुद्ति हे – Meri Biwi Komal Uski Boy Friend Se Chudti He

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भाउज में मैं आपकी सुनीता भाभी आप सभी को आजकी कहानी पर स्वागत् करता हूँ | आज मैं आपको एक कहानी से रुबरु कराऊंगा जिसे सुनकर आप थोड़े विचलित जरूर होंगे लेकिन यकीन मानिएं यह आज हमारे जैंटलमेन दिखने वाले समाज की एक नंगी सच्चाई है जिसे पचा पाना बेहद मुश्किल है. कहानी की लेखक की ज़ुबान से सुनिए बहत अछा लगेगा …..

हर साल 15 मई को मैं फिर उसे मारता हूं, हर साल वह फिर जिंदा होती है और मैं हर साल उसे इसी तरह मारता हूं…. लेकिन यह सब शायद ऐसा कभी ना था. कभी मैं उसके लिए जीना-मरना चाहता था. हमारा प्यार अमर था. दुनिया के रिति-रिवाजों को छोड़ मैंनें उसके लिए एक ऐसी दुनिया बनाई थी जहां सिर्फ दो शख्स थे एक मैं और एक वो. लेकिन हमारे रिश्ते में शक और बेवफाई की दीमक ने हमें अलग कर दिया. हम कभी दो शरीर एक जान हुआ करते थे लेकिन मैंने अपने ही हाथों अपनी जान ले ली. यह कहानी है मेरी आत्महत्या की.

कॉलेज के दिन बड़े हसीन थे. सुबह अलसाई आंखे लेकर कॉलेज जाना और फिर क्लास लेने की जगह सीधे कैंटीन में चाय पीना जैसे एक रुटीन बन गया था. क्लास में पढ़ने में यूं तो मैं कमजोर नहीं था लेकिन क्लास में बैठना बोर लगता था. ऐसे ही एक दिन कैंटीन में बैठा था कि पास आकर बैठी कोमल. कोमल इस कहानी और मेरी जिंदगी का सबसे हसीन और बदसूरत किरदार. दिखने में कुछ खास तो नहीं थी कोमल लेकिन जितना कोमल उसका नाम था उतना ही कोमल उसका स्वभाव.

कैंटीन में चूंकि हम दोनों अकेले थे इसलिए मैंने उससे पूछ लिया कि क्या आज क्लास में टीचर नहीं आई. कोमल बोली, “नहीं टीचर तो आई हैं लेकिन उसका भी आज मन नहीं लग रहा इसलिए बाहर आ गई.”

थोड़ी देर तक हमारे बीच रुटीन बातचीत हुई और हमने यूं ही फॉर्मेलिटी के लिए नंबर एक्सचेंज किए. पहले एसएमएस और फिर फोनों का ऐसा दौर चालू हुआ कि डिग्री खत्म होते होते हमारी हल्की दोस्ती गहरे प्यार में बदल गई.

कॉलेज खत्म होने के बाद मुझे एक बड़े मल्टीनेशनल कंपनी में जॉब लगी तो मैंने अपने पिताजी को उसके घर रिश्ता लेकर भेजा. हमारे प्यार को इतनी जल्दी और बिना किसी रोकटोक के अपनी मंजिल मिलेगी इसकी उम्मीद मुझे नहीं थी लेकिन जो कुछ हुआ वह बहुत खुशनुमा था.
15 मई…. यही वह तारीख थी जब हमारी शादी का दिन तय हुआ. शादी के दो दिन बाद एक महीने के लिए हम नैनीताल हनीमून के लिए गए. यह वह समय था जब हम दोनों दुनिया को खो सिर्फ एक दूसरे में ही उलझे रहते थे. कॉलेज के तीन साल जो भी दूरियां और चाहते रहीं उसे हमने तीस दिन में पूरा किया. सब कुछ इतना बेहतर चल रहा था मानों रोमियो और जुलियट को उनके प्यार की मंजिल मिल गई हो.

लेकिन इसी बीच मेरा ट्रांसफर नागपुर छोड़ दिल्ली हो गया. दिल्ली में आकर हमने एक फ्लैट लिया. तीन कमरों के इस फ्लैट में दो शरीर और एक प्राण रहने लगे. हमारे पड़ोसी बेहद अच्छे थे. इनमें से ही एक था ललित. यही वह शख्स था जिसने मेरी हंसती जिंदगी को शायद बर्बाद कर दिया.. शायद ललित या कोई और..

फिर आई एक और 15 मई मेरी मैरिज एनीवर्सरी. मैंने और कोमल ने अपने सारे पडोसियों को रात के डिनर के लिए बुलाया. बेहतरीन खाना, हल्की बियर और डांस पार्टी के बीच सभी इंजॉय कर रहे थे. इसी बीच मैंने पहली बार ललित और कोमल को आपस में बात करते देखा लेकिन इसे एक रेग्यूलर टॉक समझ मैं पार्टी में मस्त हो गया. पार्टी रात करीब 1 बजे खत्म हुई. सभी लोग चले गए, रह गए तो मैं और कोमल कुछ उसी तरह जैसे शादी के बाद सभी मेहमान चले जाते हैं और कमरे में अकेले रह जाते हैं पति और पत्नी.

हमारी जिंदगी बेहद खुशनुमा बीत रही थी कि इसी बीच एक दिन मुझे किसी काम से बैंग्लोर जाने का ऑडर आया. रात करीब दो बजे की मेरी फ्लाइट थी. कोमल के साथ डिनर कर घर से ही कैब कर मैं एयरपोर्ट के लिए रवाना हुआ. बीच में मुझे कोमल का फोन भी आया कि मैं पहुंचा कि नहीं. मैंने कहा कि हां मैं बस एयरपोर्ट पहुंच गया हूं.

इसके बाद उससे जल्दी आने का वादा कर मैंने फोन काट दिया. एयरपोर्ट पहुंच कर मैं रुटीन चैकअप के लिए लाइन में लगा ही था कि मुझे बॉस का फोन आया कि जिस क्लाइंट से मिलना है उसके घर किसी की डेथ हो गई है इसलिए मैं घर फ्लाइट ना लूं. मैं वापस घर की तरफ निकला. घर की तरफ जाते समय मैंने कोमल को फोन नहीं किया. मैंने सोचा वापस जाकर उसे सरप्राइज दूंगा लेकिन मुझे क्या पता था कि वहां जाकर मैं खुद सरप्राइज हो जाऊंगा.

अकसर घर देर से आने और कोमल की गहरी नींद की वजह से कमरे की एक चाबी में अपने पास रखता था. मैंने सोचा कि कोमल सो रही होगी और इसलिए उसे डिस्टर्ब करना गलत होगा और मैंने चाबी से घर का दरवाजा खोला. लेकिन जैसे ही मैं कमरे में दाखिल हुआ मेरे पांवो तले जमीन खिसक गई.

कमरे में कोमल के अलावा किसी दूसरे शख्स की भी आवाज थी. और शायद मैं इस आवाज को पहचानता था. यह आवाज ललित की थी. जैसे ही मैं बेडरुम की तरफ बढ़ा तो मेरा दिल धक्क-सा रह गया.

कमरे में कोमल ललित की बांहो में थी. वह कोमल जिसके लिए मैंने अपने परिवार से अलग एकल रहने का निर्णय लिया था. वह कोमल जिसके साथ मैंने एक तरह से प्रेम विवाह किया था. यह सब देखकर तो मेरा एक पल को मन हुआ कि मैं उसी वक्त किचन में पड़े चाकू से कोमल की हत्या कर दूं लेकिन उस वक्त कोमल को चौंका कर मैं उसे पछताने का मौका नहीं देना चाहता था. मैं दबे पांव कमरे से बाहर आ गया. तीन कमरों के अपने ही फ्लैट से अजनबी और पराया होकर जाने के दर्द को मेरी आंखे संभाल ना सकी. उस पूरी रात मैंने रोड़ के किनारे चलते चलते बिताई और एक ऐसा फैसला किया जो बेहद भयानक था.

हां, मैंने फैसला कर लिया था कि मैं कोमल को मार डालूंगा. दूसरी सुबह मैं घर गया और कोमल से बोल दिया कि मैंने फ्लाइट मिस कर दी और रात पर एयरपोर्ट पर था. ऑफिस जाने का मन नहीं हुआ. शायद एक अजीब से डर ने मुझे ऑफिस जाने से रोक दिया. कोमल के पूछने पर मैंने बेहद बेरुखी से जवाब दिया कि मैं ऑफिस जाऊं या ना जाऊ उससे क्या मतलब? दोस्ती, प्यार और फिर शादी तक यह आवाज शायद कोमल ने कभी नहीं सुनी थी. वह थोड़ा सहम गई और फिर आकर सर दबाने लगी लेने मैंने उसका हाथ झटक कर बोला कि वह अपना काम करे और मुझे थोड़ा अकेला रहने दे.. दरअसल मैं अकेल रहकर यह सोचना चाहता था कि मैं उसे कैसे मारू जिसे मैं सबसे ज्यादा प्यार करता था. मैं उसे दर्दनाक मौत नहीं देना चाहता था. मैं उसे कुछ इस तरह मारना चाहता था कि उसे दर्द भी ना हो और उसके प्राण भी चले जाए.

दूसरे दिन मैं ऑफिस गया. ऑफिस से कोमल के फोन पर फोन करने पर वह बिजी दर्शा रहा था. दुबारा फोन किया तो कोमल ने बोला कि वह अपनी मां से बात कर रही थी. मेरा शक गहराया. मैंने कोमल की मां को फोन लगाया और उनसे उनका हाल चाल पूछा और बोला कि आपको कोमल बहुत याद करती है कभी फोन कर लिया करो. उसकी मां ने कहा कि हां उससे तो बात किए उन्हें भी अर्शा हो गया है वह जरूर उसे फोन कर बात करेंगी.

अब कोमल पर मुझे बहुत गुस्सा आ रहा था. इस फोन के कांड ने मेरे जलते गुस्से में घी का काम किया. अब तो यह तय था कि मैं उसे मारूंगा. उस रात मैं घर नहीं गया. मैं अपने दोस्त रवि के साथ पिस्तॉल खरीदने गया.

हां, मैंने सोच लिया था कि मैं कोमल को गोली मारकर मारूंगा. दूसरी सुबह 15 मई थी. मेरी तीसरी मैरिज एनिवर्सरी. रास्ते में जाते हुए शर्मा बनारसी साड़ी भंडार से मैंने एक साड़ी ली. यह वही दुकान थी जहां से दिल्ली में आने के बाद अपनी हर एनिवर्सरी पर साड़ी खरीदती थी कोमल. रास्ते में गुल्लू कुल्फी वाले से कोमल की पसंद की कुल्फी ली और घर की तरफ निकल पड़ा. घर की तरफ जाते हुए मुझे एक एक कदम एक-एक युग की तरह लग रहा था. मेरे कदम बेहद तेजी से घर की तरफ बढ़ रहे थे. एक तरह से दौड़ते हुए मैंने सीढ़ीयां चढ़ी और कमरे की डोरबेल बजाई. एक दो तीन.. चौथी बार बेल बजाने पर कोमल आई और आते ही बोली कि क्यूं घोड़े पर सवार हो रहे हो आ तो रही थी दरवाजा खोलने.
मेरे हाथों से साड़ी और कुल्फी की थैली लेते हुए खुशी से मुझे चुमते हुए वह पीछे मुड़कर किचन की तरफ जाने लगी. इसी दौरान मैंने पिस्तॉल निकाली और एक.. दो.. तीन गोलियां दागी जो उस दिल को चीरती हुए बाहर निकल गई जिसमें मेरे लिए बेवफाई और उस ललित के लिए प्यार बसा था.

खत्म कर दिया मैंने अपने प्यार को. वह तारीख थी 15 मई. थोड़ी देर में सारा मोहल्ला जान गया कि मैंने अपनी बीवी का खून किया है. पुलिस मुझे लेकर गई लेकिन कोर्ट ने मुझे मानसिक बिमार होने की सूरत में इलाज के लिए पागलखाने भेज दिया. तब से हर 15 मई को मैं अपनी शादी की सालगिराह मनाता हूं और पत्नी का कत्ल करता हूं. 15 सालों से हर 15 मई को एक रिश्ता बनता है और एक शख्स मरता है. देखने वालों की नजर में 15 मई को कोमल मरी थी लेकिन सच तो यह है कि उस दिन एक नहीं दो खून हुए थे. एक मेरी बीवी का दूसरा मेरा.


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